जींद उपचुनाव परिणाम का हरियाणा की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव
एक मशहूर शायर ने फरमाया है:-
एक ही जाम ने दोनों का भ्रम तोड़ दिया;
मयकश मस्जिद को गया, शेख जी मयख़ाने में।
जींद उपचुनाव परिणाम का हरियाणा की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ने वाला है, इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिये। जिस विधानसभा सीट पर भाजपा[पुराना नाम जनसंघ] कभी नहीं जीत पाई, उस सीट पर पार्टी की अप्रत्याशित जीत ने प्रधानमंत्री मोदी को भी खट्टर को बधाई देने के लिये विवश कर दिया। राजस्थान की एकमात्र सीट पर, जींद के साथ हुए उपचुनाव में, भाजपा की हार और कांग्रेस की मुस्लिम महिला की जीत से भाजपा को मुंह छिपाने की जगह नहीं मिलती, अगर हरियाणा में भी उनका उम्मीदवार हार जाता। इससे मोदी जी की खुशी का कारण समझना आसान हो जाता है।
उपचुनाव परिणाम के झटके:- अब हरियाणा की राजनीति पर लौटते है, जहां अभय चौटाला को मुंह छिपाने की जगह नहीं मिल रही है। इनैलो के प्रत्याशी की न केवल हार हुई है, बल्कि जमानत भी जब्त हो गई है; कभी देवीलाल के नेतृत्व में 90 में से 87 सीटें जीतने का रिकार्ड बनाने वाली इनैलो के लिये इससे बड़ी शर्मनाक स्थिति नहीं हो सकती थी। अभय चौटाला को अपनी पार्टी की हार का आभास पहले ही हो गया था, इसलिये उसने यह कहकर- कि अगर मुझे वोट नहीं देना चाहो तो कोई बात नहीं, लेकिन दुष्यंत की नवगठित जजपा की बजाय भाजपा को वोट दे देना- राजनीति का परिचय दिया है। कांग्रेस उम्मीदवार सुरजेवाला 22740 तथा भाजपा के विद्रोही सांसद राजकुमार सैणी का प्रत्याशी 13582 वोट लेकर जमानत बचाने में कामयाब रहे; लेकिन इनैलो के केंडिडेट को 3454 मतों के साथ पांचवे स्थान से सब्र करना पड़ा।
हमेशा चढ़ते सूरज को नमस्कार करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा लोकसभा चुनाव से पहले इनैलो के साथ अपने गठबंधन को खत्म करने की सम्भावना और भी प्रबल हो गई है। वह 37631 मतों के साथ दूसरे स्थान पर रहने वाली दुष्यंत चौटाला की जजपा के साथ भी संम्बन्ध जोड़ सकती है। यह देखना रोचक रहेगा कि मायावती का ऊंट किस करवट लेटता है? या सीधा खड़ा रहता है!
जींद उपचुनाव में सबसे हास्यास्पद स्थिति राहुल गांधी के मनपसंद प्रत्याशी रणदीप सुरजेवाला की हुई है, जो 22740 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहा है। अब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा, प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर व कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी को सुरजेवाला के खिलाफ कांग्रेस हाई कमान के कान भरने का मौका मिल जाएगा कि जो प्रत्याशी जाट होते हुए भी जाट-बहुल सीट पर नहीं जीत पाया, वह व्यक्ति मुख्यमंत्री बनने के लायक तो बिल्कुल भी नहीं है।
उपसंहार:- जींद उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत ने भाजपा के पारम्परिक समर्थकों का होंसला बुलन्द किया है, वहीं दूसरी और सरकार से रुष्ट किसानों, कर्मचारियों और छोटे व्यापारियों की क्रोधाग्नि में घी डालने का काम किया है। पूर्व में नगर निगमों व अब जींद उपचुनाव में अपनी जीत से फूली नहीं समा रही भाजपा 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले मतिभ्रम का शिकार होकर शिथिल पड़ सकती है, और ऐसी स्थिति में उसे मुंह की खानी पड़ेगी। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा; तब तक इंतजार कीजिये।