जींद उपचुनाव: एक चुनाव, सौ दांव!
प्राक्कथन: हरियाणा में जींद विधानसभा सीट पर मतदान हो रहा है, और अनेक राजनीतिज्ञ इसके परिणाम की सांस रोक कर प्रतीक्षा कर रहे हैं। शायद यह हरियाणा का ऐसा प्रथम उपचुनाव है, जो हरियाणा के अनेक राजनीतिज्ञ दलों के भविष्य का फैसला करने वाला है; शायद इसीलिये सभी दलों के राजनेताओं ने जीतने के लिये ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया है। यद्यपि वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल एक वर्ष से भी कम बचा है, लेकिन फिर भी सभी पार्टियों ने अपने सबसे हैवीवेट प्रत्याशियों को चुनाव-रण में उतारा है। 31 जनवरी 2019 को सभी प्रत्याशियों के और सम्भवतया उनकी पार्टियों के भाग्य का भी फैसला होने वाला है। तब तक इस उपचुनाव के निहितार्थ को समझ लेना जरूरी होगा। जींद उपचुनाव के राजनीतिज्ञ साइड
इफैक्टस: जींद विधानसभा सीट पर पूर्व विधायक स्वर्गीय हरिचंद मिड्डा के निधन के बाद चुनाव की नौबत आई है। उनकी मृत्यु से उपजी सहानुभूति को भुनाने के लिये भारतीय जनता पार्टी ने उन्हीं के पुत्र को भाजपा में शामिल कराके अपना केंडिडेट बनाया है; और पंजाबी-भाषी मतदाताओं, जिनकी संख्या लगभग पन्द्रह हजार है, के भरोसे चुनावी नैय्या पार लगाने की आस लगाये बैठी है। वहीं दूसरी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जींद में चुनावी सभा करके, अग्रवाल समुदाय के ग्यारह हजार मतदाताओं को नवगठित जजपा के युवा प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के पक्ष में मोड़ने का प्रयास किया है। कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के मनपसंद प्रत्याशी व कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला पर दांव लगाया है। कांग्रेस पार्टी के सभी धड़ों के नेता यथा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा, हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी व हरियाणा में कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने राहुल के निर्देश पर सुरजेवाला को जिताने के लिये ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया है। विभाजन का दंश झेल चुकी अभय चौटाला की पार्टी इनैलो ने एक स्थानीय केंडिडेट को मैदान में उतारा है, और स्थानीय बनाम बाहरी का नारा लगाकर चुनाव जीतने का दम भर रही हैं। किसी भी दल का प्रत्याशी जीते, लेकिन एक बात सुनिश्चित है कि इस उपचुनाव की जीत-हार अनेक दलों के राजनीतिज्ञ भाग्य का निर्धारण करने वाली है। मिसाल के तौर पर इनैलो की हार से मायावती की वहुजन समाज पार्टी अभय चौटाला से चुनावी गठबंधन तोड़ सकती है। दुष्यंत चौटाला की नवगठित जजपा की जीत से न केवल हरियाणा में उसे जड़े जमाने का मौका मिलेगा; अपितु यह जीत मायावती की बसपा को उनसे चुनावी गठबंधन करने के लिये प्रेरित भी कर सकती है। कांग्रेस पार्टी की जीत से व केवल राहुल दरबार में सुरजेवाला की पैंठ बढ़ जाएगी, अपितु हुड्डा, तंवर व किरण चौधरी को पछाड़ कर वे हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के सर्वाधिक सशक्त उम्मीदवार के तौर पर उभर सकते हैं। भाजपा उम्मीदवार की हार का सीधा सा अर्थ लगाया जाएगा कि अब मुख्यमंत्री खट्टर व उनकी पार्टी जनता का विश्वास खो चुके हैं।
उपसंहार: जींद उपचुनाव में अनेक लोगों के भविष्य दांव पर लगे होने के कारण सभी दल, दलों के नेता व मतदाताओं की दिलचस्पी चरम पर है; 31 जनवरी के चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा ठीक ऐसे हो रही है, जैसे स्कूलों के विद्यार्थी 31 मार्च के परीक्षा परिणाम का इंतजार करते हैं।